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00:01, 30 अगस्त 2012 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल
|संग्रह=तिलक करें रघुवीर / गुलाब खंडेलवाल
}}
[[Category:गीत]]
<poem>
कृपा का कैसे मोल चुकाऊँ !
मस्तक काट चढ़ा दूँ फिर भी उऋण नहीं हो पाऊँ
तूने तो अगजग से चुन कर
दिया मुझे मानव-तन सुन्दर
हाथों में वीणा दी, जिस पर
नित नव सुर में गाऊँ
पर मैं अपने मन से हारा
भर न सका श्रावण-घन-धारा
दोष किसे, रिसते घट द्वारा
यदि रीता रह जाऊँ !
ज्यों-ज्यों आती घड़ी मिलन की
चिंता बढती जाती मन की
सुध न रही कुछ भी निज प्रण की
क्या मुँह तुझे दिखाऊँ
कृपा का कैसे मोल चुकाऊँ !
मस्तक काट चढ़ा दूँ फिर भी उऋण नहीं हो पाऊँ
<poem>