Changes

प्याला / हरिवंशराय बच्चन

4,405 bytes added, 14:26, 1 जुलाई 2020
{{KKRachna
|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन
|संग्रह=चार खेमे चौंसठ खूंटे मधुबाला / हरिवंशराय बच्चन
}}
{{KKCatKavita}}
{{KKVID|v=negMUQIy8SI}}
<poem>
मिट्टी का तन,मस्ती का मन,क्षण भर जीवन-मेरा परिचय !
1.
कल काल-रात्रि के अंधकार
में थी मेरी सत्ता विलीन,इस मूर्तिमान जग में महान था मैं विलुप्त कल रूप-हींहीन, कल मादकता थी की भरी नींद थी जड़ता से ले रही होड़,किन सरस करों का परस आज करता जाग्रत जीवन नवीन ? मिट्टी से मधु का पात्र बनूँ--बनूँ— किस कुम्भकार का यह निश्चय ?मिट्टी का तन,मस्ती का मन,क्षण भर जीवन-मेरा परिचय !
2.
भ्रम भूमि रही थी जन्म-काल,था भ्रमित हो रहा आसमान,उस कलावान का कुछ रहस्य होता फिर कैसे भासमान.भासमान। जब खुली आँख तब हुआ ज्ञात, थिर है सब मेरे आसपास;
समझा था सबको भ्रमित किन्तु
भ्रम स्वयं रहा था मैं अजान.अजान। भ्रम से ही जो उत्पन्न हुआ, क्या ज्ञान करेगा वह संचय.संचय।मिट्टी का तन,मस्ती का मन,क्षण भर जीवन-मेरा परिचय !
3.
जो रस लेकर आया भू पर
जीवन-आतप ले गया छिनछीन,खो गया पूर्व गुण,रंग,रूप, रंगहो जग की ज्वाला के अधीन; मैं चिल्लाया 'क्यों ले मेरी मृदुला करती मुझको कठोर ?'लपटें बोलीं,'चुप, बजा-ठोंकलेगी तुझको जगती प्रवीण.प्रवीण।' यह,लो, मीणा बाज़ार जगालगा, होता है मेरा क्रय-विक्रय.विक्रय।मिट्टी का तन,मस्ती का मन,क्षण भर जीवन-मेरा परिचय !
4.
मुझको न ले सके धन-कुबेर
दिखलाकर अपना ठाट-बाट,
मुझको न ले सके नृपति मोल
दे माल-खज़ाना, राज-पाट, अमरों ने अमृत दिखलाया, दिखलाया अपना अमर लोक,ठुकराया मैंने दोनों को रखकर अपना उन्नत ललाट, बिक,मगर,गया मैं मोल बिना जब आया मानव सरस ह्रदय.हृदय।मिट्टी का तन,मस्ती का मन,क्षण भर जीवन-मेरा परिचय !
5.
बस एक बार पूछा जाता,यदि अमृत से पड़ता पाला;यदि पात्र हलाहल का बनता,बस एक बार जाता ढाला; चिर जीवन औ' चिर मृत्यु जहाँ, लघु जीवन की चिर प्यास कहाँ;जो फिर-फिर होहों होठों तक जातावह तो बस मदिरा का प्याला; मेरा घर है अरमानो से परिपूर्ण जगत् का मदिरालय।मिट्टी का तन, मस्ती का मन, क्षण भर जीवन-मेरा परिचय!  6. मैं सखी सुराही का साथी, सहचर मधुबाला का ललाम; अपने मानस की मस्ती सेउफनाया करता आठयाम; कल क्रूर काल के गालों में जाना होगा—इस कारण हीकुछ और बढ़ा दी है मैंनेअपने जीवन की धूमधाम; इन मेरी उल्टी चालों पर संसार खड़ा करता विस्मय।मिट्टी का तन, मस्ती का मन, क्षण भर जीवन-मेरा परिचय!  7. मेरे पथ में आ-आ करकेतू पूछ रहा है बार-बार, ' क्यों तू दुनिया के लोगों मेंकरता है मदिरा का प्रचार? ' मैं वाद-विवाद करूँ तुझसे अवकाश कहाँ इतना मुझको, 'आनंद करो'—यह व्यंग्य भरीहै किसी दग्ध-उर की पुकार; कुछ आग बुझाने को पीते ये भी, कर मत इन पर संशय।मिट्टी का तन, मस्ती का मन, क्षण भर जीवन-मेरा परिचय!  8. मैं देख चुका जा मस्जिद मेंझुक-झुक मोमिन पढ़ते नमाज़, पर अपनी इस मधुशाला मेंपीता दीवानों का समाज; यह पुण्य कृत्य, यह पाप कर्म, कह भी दूँ, तो क्या सबूत; कब कंचन मस्जिद पर बरसा, कब मदिरालयपर गाज़ गिरी? यह चिर अनादि से प्रश्न उठा मैं आज करूँगा क्या निर्णय? मिट्टी का तन, मस्ती का मन, क्षण भर जीवन-मेरा परिचय!  9सुनकर आया हूँ मंदिर मेंरटते हरिजन थे राम-राम, पर अपनी इस मधुशाला मेंजपते मतवाले जाम-जाम; पंडित मदिरालय से रूठा, मैं कैसे मंदिर से रूठूँ, मैं फर्क बाहरी क्या देखूं; मुझको मस्ती से महज काम। भय-भ्रान्ति भरे जग में दोनों मन को बहलाने के अभिनय।मिट्टी का तन, मस्ती का मन, क्षण भर जीवन-मेरा परिचय!  10. संसृति की नाटकशाला मेंहै पड़ा तुझे बनना ज्ञानी, है पड़ा मुझे बनना प्याला, होना मदिरा का अभिमानी; संघर्ष यहाँ किसका किससे, यह तो सब खेल-तमाशा है, यह देख, यवनिका गिरती है, समझा कुछ अपनी नादानी! छिप जाएँगे हम दोनों ही लेकर अपने-अपने आशय।मिट्टी का तन, मस्ती का मन, क्षण भर जीवन-मेरा परिचय!  11. पल में मृत पीने वाले केकर से गिर भू पर आऊँगा, जिस मिट्टी से था मैं निर्मितउस मिट्टी में मिल जाऊँगा; अधिकार नहीं जिन बातों पर, उन बातों की चिंता करकेअब तक जग ने क्या पाया है, मैं कर चर्चा क्या पाऊँगा? मुझको अपना ही जन्म-निधन ' है सृष्टि प्रथम, है अंतिम लय।मिट्टी का तन,मस्ती का मन,क्षण भर जीवन-मेरा परिचय !</poem>
Delete, Mover, Reupload, Uploader
17,191
edits