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{{GKGlobalKKGlobal}}{{GKRachnaKKRachna|रचनाकार=रवीन्द्रनाथ ठाकुर|संग्रह=गीतांजलि / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
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तुम अब तो मुझे स्वीकारो नाथ, स्वीकार लो।
मन के गोपन में
मुझको उनके लिए फिर लौटा न देना
अग्‍िन अग्नि में कर दो उनका दहन।
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