भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
चाँद धरती पे इशारों से बुलाया न गया |
लाख कोशिश हुई सुधियों को भुलाने की
जब कोई याद मुझे आया तो भुलाया न गया | [९]इन्तजार का का मृदु क्षण मुझको पखवारे सा लगता है |हर दरवाजा मुझको तेरे दरवाजे-सा लगता है |सच कहता हूँ खाकर मैं सौगंध तुम्हारे अधरों की बिना तुम्हारे सांस स्वयं का अंगारे-सा लगता है| [१०]अंगारों पर चला सदा मैं अंतर में मधुमास लिये |जूझा हूँ पग-पग झंझा से कूलों का विश्वास लिये |तुम्ही चढ़ावोगे आंसू का अर्ध्य हमारे गीतों पर इस कारण हँसता आया हूँ मैं जगती का उपहास लिये | [११]सांस वह जिसने समय को दी रवानी है |जो फिसलते को संभाले वह जवानी है |नींद क्यों आती नहीं बेचैन है मन शायद किसी मनुज की आँख में पानी है | [१२]हर आदमी को औरों के लिये जीना भी नहीं आता है |हर सपन को साध का जिल्द-सीना भी नहीं आता है |अफसोस मुकद्दर ने सुराही पे सुराही दी उन्हें महफ़िल में जिनको तमीज से पीना भी नहीं आता है |
<poem>
514
edits