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काळ / गोरधनसिंह शेखवत

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आभै रै काळजै में
कठै सिवांत
च्यारूं-मेर फीकै मूंडै रा
उणमणां बादळ
अळसायोडी उडीक रै माथै
उगण लाग्या
मौत री छिब रा
अणचावा अैनाण

अै कांई हाल
देखो जठै
पेट रा हाफल्योड़ा सवाल
काळ
फगत लूंठो काळ
दाबतो आवै
धरती री मरोड़
मिनख री मरजादा
भूख
सिरैनाव भूख
कळपावै इतियास री कूख

मिनख
मिनख सारू
मौत री विगत बणावै
हंसते आंगणै में
मौत रो बतूळियो
झाडू़ लगावै

स्यात
सालीना हुवै अैड़ो नाटक
मिनखपणै री
गळफांसी रो
कंठा रो लोय
भाप बणनै
सूखी रेत नै तपा देवै
जळ-बळती भोमरा
आसुवां नै
हथेळ्यां में राख'र
मिनखपणौ
चोफेर घूमै

<poem>
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