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अग्निधर्म / कन्हैयालाल नंदन

30 bytes removed, 06:02, 5 दिसम्बर 2012
{{KKRachna
|रचनाकार=कन्हैयालाल नंदन
}} <poem>अंगारे को तुमने छुआऔर हाथ में फफोला नहीं हुआइतनी सी बात परअंगारे पर तोहमत मत लगाओ
 अंगारे को तुमने छुआ<br>और हाथ में फफोला नहीं हुआ<br>इतनी सी बात पर<br>अंगारे पर तोहमत मत लगाओ.<br><br> जरा तह तक जाओ<br>आग भी कभी-कभी<br>आपद्धर्म निभाती है<br>और जलने वाले की क्षमता देखकर जलाती है.<br><br/poem>