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सुन कर बोल कर / संगीता गुप्ता

No change in size, 15:44, 7 दिसम्बर 2012
अंगार की तरह मन में
दहकता रहता है लगातार
कभी दृष्य दृश्य कभी अदृष्य अदृश्य
खिलता है कभी फूल - सा
चुभता है कभी षूल - सा
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