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बंटवारा कर दो / महेश अनघ

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}}
बंटवारा {{KKCatNavgeet}}<poem>बँटवारा कर दो ठाकुर।ठाकुर ।
तन मालिक का
 
धन सरकारी
मेरे हिस्से परमेसुर ।
मेरे हिस्से परमेसुर।
 
 
शहर धुंए के नाम चढ़ाओ
शहर धुएँ के नाम चढ़ाओ
सड़कें दे दो झंडों को
 
पर्वत कूटनीति को अर्पित
 तीरथ दे दो पंडों को।को ।खीर -खांड ख़ैराती खाते 
हमको गौमाता के खुर
सब छुट्टी के दिन साहब के
 
सब उपास चपरासी के
 
उसमें पदक कुंअर जू के हैं
 खून ख़ून पसीने घासी के अजर -अमर श्रीमान उठा लें 
हमको छोड़े क्षण भंगुर
पंच पँच बुला कर करो फ़ैसला चौड़े -चौक उजाले में त्याग -तपस्या इस पाले में 
गजभीम उस पाले में
 
दीदे फाड़-फाड़ सब देखें
 
हम देखेंगे टुकुर-टुकुर
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