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आशंका की आँधी में
ढह गए गढ़, दुर्ग सब
काँपना था पत्ते की तरह
इस बिषवृक्ष की छाया में तपना था
निर्जन नदी के भंवर भँवर में
जर्जर नाव लिए भटकना था