यह भी सच-बदल गये है चंद सुराजी
है यत्र-तत्र बाजार गर्म ‘चाँदी’ का
आदर्ष आदर्श खटाई में फूला ‘गाँधी’ का
यह पर्व व्यक्ति का नहीं, राष्ट्र की थाती
यदि नहीं, पुतेगा चेहरों पर अलकतरा
शासित जैसे होंगे, शासक भी होगा
ष्यह यह घड़ी न आदर्षों आदर्शों का शव ढोने की
यह घड़ी राष्ट्र-पद-पद्मों के पूजन की
यह घड़ी फूट की बेल नहीं बोने की
जिसको तुमने अब तक अंतर में पाला
सुलगाये रक्खो असंतोष की ज्वाला
टूटेगा निष्चय निश्चय अहंकार शासन का
है देर तुम्हारे ही जाग्रत होने की
‘हड़ताल’ पीठ में छुरी चुभाना ही है
अधबुने नीड़ पर वज्र गिराना ही है
मत दो मौका दुष्मन दुश्मन को खुश होने का
मिल-जुल कर नीड़ बनाओ तुम सोने का
चाँदी की चिडि़या जिस में चह-चह बोले
यह घड़ी फूट की बेल नहीं बोने की
दुष्मन दुश्मन की आँखों में बनकर चिनगारी
दप-दप दीपेगी ही केसर की क्यारी
यह देष देश ‘ताँतिया टोपे’ का ‘मंगल’ कायह देष देश जिसे सम्बल है गंगाजल का
भारत की हर नारी ‘झाँसी की रानी’
उतरा न अभी भी तलवारों का पानी