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Kavita Kosh से
'''शर्तें और स्थितियाँ'''
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हम उन बच्चों की तरह थे जो समुद्र से बाहर आना नहीं चाहते
इस तरह नीली रातें आयीं आईं
और फिर काली
हम क्या वापस ला पाए अपने बाक़ी के जीवन के लिए
एक लपट भरा चेहरा ?
जलती हुई झाड़ियों-सा, जो ख़त्म नहीं कर सकेगा ख़ुद को
अपने जीवन के आख़िर तक
बुरी बातें तो हमे करनी थीं हमारे
बाक़ी के जीवन में !
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