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कुछ अशआर / राहत इन्दौरी

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शाख़ों से टूट जायें वो पत्ते नहीं हैं हम
आँधी से कोई कह दे कि औक़ात में रहे
 
'''4'''
आंख में पानी रखो, होठों पे चिंगारी रखो
जिंदा रहना है तो, तरकीबें बहुत सारी रखो
 
ले तो आये शायरी बाज़ार में राहत मियां
क्या ज़रूरी है के लहजे को भी बाज़ारी रखो
 
'''5'''
कल तक दर दर फिरने वाले, घर के अन्दर बैठे हैं
और बेचारे घर के मालिक, दरवाज़े पर बैठे हैं
 
खुल जा सिम सिम याद है किसको, कौन कहे और कौन सुने
गूंगे बाहर चीख रहे हैं, बहरे अन्दर बैठे हैं
 
'''6'''
नदी ने धूप से क्या कह दिया रवानी में
उजाले पाँव पटकने लगे हैं पानी में
 
अब इतनी सारी शबों का हिसाब कौन रखे,
बहुत सवाब कमाए गए जवानी में
 
'''7'''
हर एक लफ्ज़ का अंदाज़ बदल रखा है
आज से हमने तेरा नाम, ग़ज़ल रखा है
 
मैंने शाहों की मोहब्बत का भरम तोड़ दिया
मेरे कमरे में भी एक ताज महल रखा है
</poem>
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