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|रचनाकार= नामवर सिंह
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विजन गिरीपथ पर चटखती पत्तियों का लास
 
हृदय में निर्जल नदी के पत्थरों का हास
'लौट आ, घर लौट' गेही की कहीं आवाज़
 भींगते से वस्त्र शायद छू गया वातास।वातास ।</poem>
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