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जिंदगी / बुद्धिनाथ मिश्र

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}}
[[Category:नवगीत]]{{KKCatNavgeet}}<poem>जिंदगी अभिशाप भी, वरदान भी<br>जिंदगी दुख में पला अरमान भी<br>क़र्ज़ सांसों का चुकाती जा रही <br>जिंदगी है मौत पर अहसान भी <br> वे जिन्हें सर पर उठाया वक्त ने<br>भावना की अनसुनी आवाज थे <br>बादलों में घर बसाने के लिए<br>चंद तिनके ले उडे परवाज थे <br><br>दब गये इतिहास के पन्नों तले तितलियों के पंख, नन्ही जान भी
दब गये कौन करता याद अब उस दौर कोजब गरीबी इतिहास के भी कटी पन्नों तले <br>आराम से तितलियों गर्दिशों की मार को सहते हुए लोग रिश्ता जोड बैठे राम सेराजसुख से प्रिय जिन्हें वनवास थाकिस तरह के पंख, नन्ही जान भी <br><br>थे यहाँ इन्सान भी।
कौन करता याद अब उस दौर को<br>जब गरीबी भी कटी आराम से <br>गर्दिशों की मार को सहते हुए <br>लोग रिश्ता जोड बैठे राम से<br><br> राजसुख से प्रिय जिन्हें वनवास था<br>किस तरह के थे यहाँ इन्सान भी।<br><br> आज सब कुछ है मगर हासिल नहीं<br>हर थकन के बाद मीठी नींद अब<br>हर कदम पर बोलियों की बेडयाँ<br>जन्दगी घुडदौड की मानिन्द अब<br><br> आँख में आँसू नहीं काजल नहीं<br>
होठ पर दिखती न वह मुस्कान भी।
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