|रचनाकार=गोपालदास "नीरज"
}}
<poem>
{{KKCatGeet}}
तन तो आज स्वतंत्र हमारा, लेकिन मन आज़ाद नहीं है।
तन तो सचमुच आज स्वतंत्र हमारा, लेकिन मन आज़ाद नहीं है।<br><br>काट दी हमनेजंजीरें स्वदेश के तन कीबदल दिया इतिहास बदल दीचाल समय की चाल पवन की
सचमुच देख रहा है राम राज्य कास्वप्न आज काट दी हमने<br>साकेत हमाराजंजीरें स्वदेश खूनी कफन ओढ़ लेती हैलाश मगर दशरथ के तन की<br>बदल दिया इतिहास बदल दी<br>चाल समय की चाल पवन प्रण की <br><br>
देख रहा है राम राज्य का<br>स्वप्न मानव तो हो गया आज साकेत हमारा<br>खूनी कफन ओढ़ लेती ह<br>आज़ाद दासता बंधन से परलाश मगर दशरथ मज़हब के प्रण की<br><br> पोथों से ईश्वर का जीवन आज़ाद नहीं है।तन तो आज स्वतंत्र हमारा, लेकिन मन आज़ाद नहीं है।
मानव तो हो गया आज<br>आज़ाद दासता बंधन हम शोणित से पर<br>मज़हब सींच देश के पोथों से ईश्वर का जीवन आज़ाद नहीं है।<br>पतझर में बहार ले आएखाद बना अपने तन तो आज स्वतंत्र हमारा, लेकिन मन आज़ाद नहीं है। <br><br>की-हमने नवयुग के फूल खिलाए
हम शोणित से सींच देश के <br>पतझर डाल डाल में बहार ले आए<br>हमने ही तोखाद बना अपने तन की-<br>अपनी बाहों का बल डालापात पात पर हमने नवयुग ही तोश्रम जल के फूल खिलाए <br><br>मोती बिखराए
डाल डाल में हमने ही तो<br>कैद कफस सय्यद सभी सेअपनी बाहों का बल डाला<br>बुलबुल आज स्वतंत्र हमारीपात पात पर हमने ही ऋतुओं के बंधन से लेकिन अभी चमन आज़ाद नहीं है।तन तो<br>आज स्वतंत्र हमारा, लेकिन मन आज़ाद नहीं है। श्रम जल के मोती बिखराए <br><br>यद्यपि कर निर्माण रहे हमएक नयी नगरी तारों में सीमित किन्तु हमारी पूजामन्दिर मस्जिद गुरूद्वारों में
कैद कफस सय्यद सभी से<br>बुलबुल यद्यपि कहते आज स्वतंत्र हमारी<br>ऋतुओं के बंधन से लेकिन अभी चमन आज़ाद नहीं है।<br>तन तो आज स्वतंत्र हमारा, लेकिन मन आज़ाद नहीं है। <br>यद्यपि कर निर्माण रहे कि हम<br>सबएक नयी नगरी तारों में <br>हमारा एक देश हैसीमित गूंज रहा है किन्तु हमारी पूजा<br>घृणा कामन्दिर मस्जिद गुरूद्वारों तार बीन की झंकारों में <br><br>
यद्यपि कहते आज कि हम सब<br>एक हमारा एक देश है<br>गूंज रहा है किन्तु घृणा का<br>तार बीन की झंकारों में <br><br> गंगा ज़मज़म के पानी में<br>घुली मिली ज़िन्दगी़ हमारी<br>मासूमों के गरम लहू से पर दामन आज़ाद <br>नहीं है ।<br>है।तन तो आज स्वतंत्रतापूर्ण स्वतंत्रत हमारा लेकिन मन<br>आज़ाद नहीं है।