1,319 bytes added,
08:11, 14 मई 2013 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार='अना' क़ासमी
|संग्रह=मीठी सी चुभन/ 'अना' क़ासमी
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
शाम से पहले अगर तुमको चला जाना था
ऐसे आने से बेहतर तेरा ना आना था
फिर खुदा जाने के ये प्यास बुझाई किसने
अब्र था, झील थी, वो आंख थी, पैमाना था
हर जगह खूब मजे़ लेके सुनी है सबने
दास्तां मेरी थी और आप का फ़रमाना था
चांद को झील में डुबकी भी अभी लेना थी
रूख़ से आंचल भी अभी आपको सरकाना था
और तुम हो कि तुम्हें थोड़ी सी फुरसत ही नहीं
तुमको तनहाई में कुछ बैठ के समझाना था
बचना दुश्वार था शैतान की ख़ालाओं से
कुछ पशोपेश में कल रात से मौलाना था
<poem>