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{{KKRachna
|रचनाकार=नीरज दइया
|संग्रह= उचटी हुई नींद / नीरज दइया
}}
{{KKCatKavita‎}}<poem>इत्र को चख कर
मीठा किसने बताया था
तुमने.... या तुमने?

क्या तुमने नहीं कहा था?
तो क्या तुम चुप थे वहां?
तुम चुप क्यों थे वहां....

और अब यहां....
तुम्हारी भूमिका क्या है?
क्या तुम सुन रहे हो?

कितने लोग कहते हैं-
कविता कुछ नहीं करती।
कुछ नहीं करती कविता!
क्या कुछ नहीं करती कविता?

कमाल है
तुम अब भी चुप हो!</poem>
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