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तुम्हारी सुनकर- ‘नहीं’क्यों करता हूं- इंतजार?लगता है कि तुम आओगी ।!बार-बार आहट सुनता हूँहूं आहटऔर खोलकर देखता हूँ- घर का दरवाज़ाइंतज़ार इंतजार में तुम्हारेअब मैं ही बन गया हूँ दरवाज़ाहूं- दरवाजा!और खड़ा हूँ घर के बाहर इंतज़ार में ठहर गई है ज़िदगीमुझ अब इस निर्जीव कोतुम्हारे स्पर्श का इंतज़ार इंतजार है ।....
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