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{{KKRachna
|रचनाकार=नीरज दइया
|संग्रह=उचटी हुई नींद / नीरज दइया
}}
{{KKCatKavita‎}}<poem>जब मैंने किया प्रेम
वह समय नहीं था
वह प्रेम था समय से पहले

जब समय था प्रेम का
समय ने कुछ कहा नहीं
मैं दुखी था,
वह शोक किसका था-
उसका, प्रेम का या समय का?

समय निकलने के बाद
फिर हो गया है प्रेम
या लौट कर आया है प्रेम!

समय से पहले का प्रेम
और समय के बाद का प्रेम
होता है कष्टकारक
ठीक समय पर
होता ही नहीं प्रेम!</poem>
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