भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
{{KKCatBaalKavita}}
<poem>
मैं घमंडों में भरा ऐंठा हुआ,हुआ।एक दिन जब था मुंडेरे मुँडेरे पर खड़ा।आ अचानक दूर से उड़ता हुआ,हुआ।एक तिनका आँख में मेरी पड़ा।पड़ा।1।
मैं झिझक उठा, हुआ बेचैन-सा,सा।
लाल होकर आँख भी दुखने लगी।
मूँठ देने लोग कपड़े की लगे,लगे।ऐंठ बेचारी दबे पॉंवों भागने लगी।पाँवों भगी।2।
जब किसी ढब से निकल तिनका गया,गया।तब 'समझ' ने यों मुझे ताने दिए।दिये।ऐंठता तू किसलिए इतना रहा,रहा।एक तिनका है बहुत तेरे लिए।</poem>लिए।3।