आज बाजी लगा दी भक्ति ने ही,
मुक्ति मे नहीं ये कामना फलेगी,
सोचना क्या, तुम हारो, ना हारो! 26. शपथ है तुम्हें इस विरागी हृदय कीअधूरी तपस्या तुम्हें माँगती है! न जीवन रहेगा, न आँसू बचेंगे, न पिर-फिर यही राग चलते रहेंगे, न मिट्टी इसी रूप में रह सकेगी, सदा ही न ये प्राण बहले रहेंगे! मिटी आश, चिन्ता न इसकी मुझे, पर न मिट पा सकेंगी अभी साधनाये, ढलेगा दिवस और रजनी ढलेगी, चलेंगी अभी मौन आराधनाये! स्वयं ही तुम्हें पास आना पड़ेगाकि ये जल रही प्राण सी आरती है! अभी वेदना श्वास को बाँधती, पर रहेगा सदा ही न अस्तित्व मेरा, जनम-मौत खींचे लिये चल रहेंहैं, मिलोगा कहीं तो मुझे ठौर मेरा! अरे, पत्थरों से भले तुम रहो, पर कभी आवरण यह हटाना पड़ेगा, कभी मृत्तिका में खिलेंगे सुमन वह,कि जिनको तुम्हें सिर चढ़ाना पड़ेगा! अरे देवता, तुम न पत्थर रहोगेकि जब तक यहां भावना जागती है!