भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

साँचा:KKPoemOfTheWeek

2,642 bytes added, 20:34, 25 मई 2013
<div style="font-size:120%; color:#a00000">
फूले कदम्बआदिवासी
</div>
<div>
रचनाकार: [[नागार्जुनमदन कश्यप]]
</div>
<poem>
फूले कदम्बठण्डे लोहे-सा अपना कन्धा ज़रा झुकाओटहनीहमें उस पर पाँव रख कर लम्बी छलाँग लगानी हैमुल्क को आगे ले जाना हैबाज़ार चहक रहा हैऔर हमारी बेचैन आकाँक्षाओं के साथ-टहनी में कन्दुक सम झूले कदम्बसाथ हमारा आयतन भी बढ़ रहा हैफूले कदम्बतुम तो कुछ घटो रास्ते से हटोसावन बीताबादल तुम्हारी स्त्रियाँ कपड़े क्यों पहनती हैंवे तो ऐसी ही अच्छी लगती हैंतुम्हारे बच्चे स्कूल क्यों जाते हैं(इसमें धर्मान्तरण की साजिश तो नहीं)तुम तो अनपढ़ ही अच्छे लगते हो बस, अपना यह जंगल नदी पहाड़ हमें दे दोहम इन्हें निचोड़ कर देश को आगे ले जाएँगेदुनिया में अपनी तरक्की का कोप मादल बजाएँगेऔर यदि बचे रहे तो तुम्हें भी नाचने-गाने के लिए बुलाएँगे देश के लिए हम इतना सब कर रहे हैंतुम इतना भी नहीं रीताकर सकते !जाने कब से वो बरस रहाललचाई आँखों से नाहकतुम्हारी भाषा अब गन्दी हो गई हैउसमें विचार आ गए हैंतुम्हारी सँस्कृति पथ-भ्रष्ट हो गई हैउसमें हथियार आ गए हैंख़तरनाक होती जा रही हैं तुम्हारी बस्तियाँकेवल हमारी दया पर बसी नहीं रहना चाहतीं हमने तो बहुत पहले ही सब कुछ तय कर दिया थातुम्हें बोलना नहीं गाना आना चाहिएपढ़ना नहीं नाचना आना चाहिएसोचना नहीं डरना आना चाहिएअब तुम्हीं कभी-कभी भटक जाते हो तुम्हें कौन-सी बानी बोलनी हैकौन-सा धर्म अपनाना हैकिस बस्ती में रहना हैजाने कब से तू तरस रहाकहाँ चले जाना हैमन कहता यह तय करने का अधिकार तुम्हें नहीं है छू ले कदम्बफूले कदम्बझूले कदम्बतुम तो बस, जो हम कहते हैं वह करोबेकार झमेले में मत पड़ोहम से डरो हमारी भाषा से डरोहमारी सँस्कृति से डरो हमारे राष्ट्र से डरो !
</poem>
</div></div>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,693
edits