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Kavita Kosh से
खुशबू जैसे लोग मिले अफ़साने में<br>
एक पुराना खत खोला अनज़ाने अनजाने में<br><br>
जाना किसका जिक्र ज़िक्र है इस अफ़साने में<br>
दर्द मज़े लेता है जो दुहराने में<br><br>
रात गुज़रते शायद थोड़ा वक्त लगे<br>
ज़रा सी धूप दे उन्हे उन्हें मेरे पैमाने में<br><br>
दिल पर दस्तक देने ये कौन आया है<br>
किसकी आहट सुनता है वीराने मे ।<br><br>
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