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06:08, 2 जून 2013
|रचनाकार=बशीर बद्र
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सुबह का झरना, हमेशा हंसने वाली औरतें
झूटपुटे की नदियां, ख़मोश गहरी औरतें
सुबह का झरना, हमेशा हंसने वाली औरतें<br>सड़कों बाज़ारों मकानों दफ्तरों में रात दिनझूटपुटे की नदियांलाल पीली सब्ज़ नीली, ख़मोश गहरी जलती बुझती औरतें<br><br>
सड़कों बाज़ारों मकानों दफ्तरों शहर में रात दिन<br>एक बाग़ है और बाग़ में तालाब हैलाल पीली सब्ज़ नीली, जलती बुझती तैरती हैं उसमें सातों रंग वाली औरतें<br><br>
शहर में एक बाग़ है और बाग़ में तालाब है<br>तैरती सैकड़ों ऎसी दुकानें हैं उसमें सातों रंग वाली जहाँ मिल जायेंगीधात की, पत्थर की, शीशे की, रबर की औरतें<br><br>
सैकड़ों ऎसी दुकानें हैं जहाँ मिल जायेंगी<br>धात की, पत्थर की, शीशे की, रबर की औरतें<br><br> इनके अन्दर पक रहा है वक़्त का आतिश-फिशान<br>किं पहाड़ों को ढके हैं बर्फ़ जैसी औरतें<br><br>