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09:40, 2 जून 2013 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार='अना' क़ासमी
|संग्रह=मीठी सी चुभन/ 'अना' कासमी
}}
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<poem>
अपने पुरखों की शान देखो तो
हुक्काओ -पानदान देखो तो
खून के बाद बेच दी किडनी
भुखमरी की दुकान देखो तो
लोग हैं या कि रेंगते कीड़े
इतना ऊँचा मकान देखो तो
एक ढांचा खड़ा है हल लेकर
अपना हिन्दोस्तान देखो तो
ढो रही है पहाड़ जैसे दुख
एक छोटी सी जान देखो तो
कैसा ज़र्रे को आफ़ताब किया
शायरी की उड़ान देखो तो
कह दिया उसने मान ली तुमने
कितने कच्चे हैं कान देखो तो
तरजुमा अपने अपने मतलब का
अपना अपना कुरान देखो तो
मस्जिदें हैं, या ये अखाड़े हैं
इस क़दर खींचतान देखो तो
</poem>
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