भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार='अना' क़ासमी |संग्रह=मीठी सी चुभन/ '...' के साथ नया पन्ना बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार='अना' क़ासमी
|संग्रह=मीठी सी चुभन/ 'अना' कासमी
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
आराइशे-खुर्शीदो-क़मर<ref>चांद तारों की सजावट</ref>किसके लिए है
जब कोई नहीं है तो ये घर किसके लिए है
मुझ तक तो कभी चाय की नौबत नहीं आई
होगा भी बड़ा तेरा जिगर किसके लिए है
हैं अपने मरासिम<ref>ताल्लुकात</ref>भी मगर ऐसे कहां हैं
इस सम्त इशारा है मगर किसके लिए है
है कौन जिसे ढूंढ़ती फिरतीं हैं निगाहें
आंखों में तेरी गर्दे-सफ़र किसके लिए है
अब रात बहुत हो भी चुकी बज़्म<ref>प्रोग्राम</ref>शुरू हो
मैं हूं न यहां दर पे नज़र किसके लिऐ है
अशआर<ref>शेरों</ref>की शोख़ी तो चलो सबके लिए हाँ
लहजे में तेरे ज़ख़्मे-हुनर किसके लिए है
शक़ था तिरे तक़वे<ref>पकबाजी</ref>पे ‘अना’ पहले से मुझको
वो ज़ोहराजबीं<ref>हसीना</ref>कल से इधर किसके लिए है
</poem>
{{KKMeaning}}
{{KKRachna
|रचनाकार='अना' क़ासमी
|संग्रह=मीठी सी चुभन/ 'अना' कासमी
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
आराइशे-खुर्शीदो-क़मर<ref>चांद तारों की सजावट</ref>किसके लिए है
जब कोई नहीं है तो ये घर किसके लिए है
मुझ तक तो कभी चाय की नौबत नहीं आई
होगा भी बड़ा तेरा जिगर किसके लिए है
हैं अपने मरासिम<ref>ताल्लुकात</ref>भी मगर ऐसे कहां हैं
इस सम्त इशारा है मगर किसके लिए है
है कौन जिसे ढूंढ़ती फिरतीं हैं निगाहें
आंखों में तेरी गर्दे-सफ़र किसके लिए है
अब रात बहुत हो भी चुकी बज़्म<ref>प्रोग्राम</ref>शुरू हो
मैं हूं न यहां दर पे नज़र किसके लिऐ है
अशआर<ref>शेरों</ref>की शोख़ी तो चलो सबके लिए हाँ
लहजे में तेरे ज़ख़्मे-हुनर किसके लिए है
शक़ था तिरे तक़वे<ref>पकबाजी</ref>पे ‘अना’ पहले से मुझको
वो ज़ोहराजबीं<ref>हसीना</ref>कल से इधर किसके लिए है
</poem>
{{KKMeaning}}