|रचनाकार=गिरिजाकुमार माथुर
}}
{{KKCatKavita}}<poem>कौन थकान हरे जीवन की? <br><br>बीत गया संगीत प्यार का,<br>रूठ गयी कविता भी मन की । <br><br>वंशी में अब नींद भरी है,<br>स्वर पर पीत सांझ उतरी है <br>बुझती जाती गूंज आखिरी <br><br>इस उदास बन पथ के ऊपर <br>पतझर की छाया गहरी है,<br><br>अब सपनों में शेष रह गई<br>सुधियां उस चंदन के बन की ।<br><br>रात हुई पंछी घर आए,<br>पथ के सारे स्वर सकुचाए,<br>म्लान दिया बत्ती की बेला <br>थके प्रवासी की आंखों में<br>आंसू आ आ कर कुम्हलाए,<br><br>कहीं बहुत ही दूर उनींदी <br>झांझ बज रही है पूजन की ।<br>
कौन थकान हरे जीवन की?