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ओ शान्त स्निगध मुखाकृति आत्म-ग्लानिसँ भ’ गे होएत ज्वालामुखी....
ओहि गामक सभ लोक बरौनी-कारखाना मे,
अथवा कलकŸाा कलकत्त जमशेदपुर....
बचि गेल होएत केवल स्त्री-समाज
मनिआर्डरक प्रतीक्षा
आ, बीतल वयसक स्मृतिमे ब्यस्त !
</poem>
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