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वर्तनी सुधार
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'''दोष'''
हे सूर्यदेव!
युगों से भीगे
झिलमिलाती झील-से
आँचल पर
शैवाल अंधेराअन्धेरागुपचुप खुभा गुभा है,
चीर,
तल के जमाव तक
सुनहली धूप
और पीढ़ियाँ समझती हैं
जल में बहा दिया मैंने।
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