भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
वर्तनी सुधार
<poem>
'''बदली'''
आज फिर....?
मुट्ठी में बिजलियों की जलन
और अपनी चीत्कार से
भाल पटक
सीने में उमड़ी
घोर घटा श्यामल धुँआरी....।
चुपना न चाहता जी
चाहती है मेटना निजमेटना
तड़पती और बरसती है
वह विवश
सिसक-सिसक
पत्थरों पर---।
</poem>