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परिताप / कविता वाचक्नवी

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<poem> ढूँढता है ठौर
यह दोने धरा
दीपक कँपीला ,
जाए कहाँ ?
बस डूबना तय है... सुनिश्चित ।
 
इस किनारे पर
वेदना में
जल भरेगा ।
 
जल मिटो
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