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कबीर दोहावली / पृष्ठ १०

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हस्ती चढ़िये ज्ञान की, सहज दुलीचा डार ।
श्वान रूप संसार है, भूकन दे झक मार ॥ 901 ॥
हस्ती चढ़िये ज्ञान या दुनिया दो रोज की, सहज दुलीचा डार मत कर या सो हेत <BR/>श्वान रूप संसार हैगुरु चरनन चित लाइये, भूकन दे झक मार जो पूरन सुख हेत 901 902 <BR/><BR/>
या दुनिया दो रोज कीकबीर यह तन जात है, मत कर या सो हेत सको तो राखु बहोर <BR/>गुरु चरनन चित लाइयेखाली हाथों वह गये, जो पूरन सुख हेत जिनके लाख करोर 902 903 <BR/><BR/>
कबीर यह तन जात हैसरगुन की सेवा करो, सको तो राखु बहोर निरगुन का करो ज्ञान <BR/>खाली हाथों वह गयेनिरगुन सरगुन के परे, जिनके लाख करोर तहीं हमारा ध्यान 903 904 <BR/><BR/>
सरगुन की सेवा करोघन गरजै, निरगुन का करो ज्ञान । <BR/>दामिनि दमकै, बूँदैं बरसैं, झर लाग गए।निरगुन सरगुन के परेहर तलाब में कमल खिले, तहीं हमारा ध्यान ॥ 904 तहाँ भानु परगट भये॥ 905 <BR/><BR/>
घन गरजै, दामिनि दमकै, बूँदैं बरसैं, झर लाग गए। <BR/>हर तलाब में कमल खिले, तहाँ भानु परगट भये॥ 905 ॥ <BR/><BR/> क्या काशी क्या ऊसर मगहर, राम हृदय बस मोरा। <BR/>जो कासी तन तजै कबीरा, रामे कौन निहोरा ॥ 906 ॥ <BR/><BR/>
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