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बहुत कुछ कहाइल,बहुत कुछ लिखाइल मगर बात मन के कबो न ओराइल लिखाइल भले बात हिरदय से अपनामगर ऊ लिखलका कबो न पढ़ाइल हमरा देक्ज के ऊ नज़र फेर लिहलेपहुँचली जबे हम उहाँ पर धधाइल बताईं ना, कइसे ऊ मन से हटाईंसहज रूप उनकर जे मन में समाइल कहाँ बाटे फुर्सत की सोचत करीं हम इहाँ रोजी-रोटी के दँवरी नधाइल.
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