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|रचनाकार=कन्हैयालाल नंदन
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<poem>
एक नाम अधरों पर आया,
अंग-अंग चंदन वन हो गया.
बोल है कि वेद की ऋचायें
सांसों में सूरज उग आयें
आखों में ऋतुपति के छंद तैरने लगे
मन सारा नील गगन हो गया.
एक नाम अधरों पर आया,<br>गंध गुंथी बाहों का घेराअंग-अंग चंदन वन जैसे मधुमास का सवेराफूलों की भाषा में देह बोलने लगीपूजा का एक जतन हो गया.<br><br>
बोल है कि वेद की ऋचायें<br>पानी पर खीचकर लकीरेंसांसों में सूरज उग आयें<br>काट नहीं सकते जंजीरेंआखों में ऋतुपति आसपास अजनबी अधेरों के छंद तैरने लगे<br>डेरे हैंमन सारा नील गगन अग्निबिंदु और सघन हो गया.<br><br>
गंध गुंथी बाहों का घेरा<br>जैसे मधुमास का सवेरा<br>फूलों की भाषा में देह बोलने लगी<br>पूजा का एक जतन हो गया.<br><br> पानी पर खीचकर लकीरें<br>काट नहीं सकते जंजीरें<br>आसपास अजनबी अधेरों के डेरे हैं<br>अग्निबिंदु और सघन हो गया.<br><br> एक नाम अधरों पर आया,<br>अंग-अंग चंदन वन हो गया.<br><br>
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