Changes

विश्‍वास / हरिवंशराय बच्चन

22 bytes removed, 03:42, 2 जुलाई 2013
|संग्रह=सतरंगिनी / हरिवंशराय बच्चन
}}
{{KKCatKavita}}<poem>
पंथ जीवन का चुनौती
 
दे रहा है हर कदम पर,
 
आखिरी मंजिल नहीं होती
 
कहीं भी दृष्टिगोचर,
 
धूलि में लद, स्‍वेद में सिंच
 
हो गई है देह भारी,
 
कौन-सा विश्‍वास मुझको
 
खींचता जाता निरंतर?-
 
पंथ क्‍या, पंथ की थकान क्‍या,
 
स्‍वेद कण क्‍या,
 
दो नयन मेरी प्रतीक्षा में खड़े हैं।
 
एक भी संदेश आशा
 
का नहीं देते सितारे,
 
प्रकृति ने मंगल शकुन पथ
 
में नहीं मेरे सँवारे,
 
विश्‍व का उत्‍साहवर्धक
 
शब्‍द भी मैंने सुना कब,
 
किंतु बढ़ता जा रहा हूँ
 
लक्ष्‍य पर किसके सहारे?-
 
विश्‍व की अवहेलना क्‍या,
 
अपशकुन क्‍या,
 
दो नयन मेरी प्रतीक्षा में खड़े हैं।
 
चल रहा है पर पहुँचना
 
लक्ष्‍य पर इसका अनिश्चित,
 
कर्म कर भी कर्म फल से
 
यदि रहा यह पांथ वंचित,
 
विश्‍व तो उस पर हँसेगा
 
खूब भूला, खूब भटका!
 
किंतु गा यह पंक्तियाँ दो
 
वह करेगा धैर्य संचित-
 
व्‍यर्थ जीवन, व्‍यर्थ जीवन,
 
की लगन क्‍या,
 
दो नयन मेरी प्रतीक्षा में खड़े हैं!
 
अब नहीं उस पार का भी
 
भय मुझे कुछ भी सताता,
 
उस तरु के लोक से भी
 
जुड़ चुका है मेरा नाता,
 
मैं उसे भूला नहीं तो
 
वह नहीं भूली मुझे भी,
 
मृत्‍यु-पथ पर भी बढ़ूँगा
 
मोद से यह गुनगुनाता-
 
अंत यौवन, अंत जीपन
 
का मरण क्‍या,
 
दो नयन मेरी प्रतीक्षा में खड़े हैं!
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader, प्रबंधक
35,131
edits