|रचनाकार=भगवतीचरण वर्मा
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हम दीवानों की क्या हस्ती, आज यहाँ कल वहाँ चले
मस्ती का आलम साथ चला, हम धूल उड़ाते जहाँ चले
हम दीवानों की क्या हस्तीआए बनकर उल्लास कभी, आज यहाँ कल वहाँ आँसू बनकर बह चले<br>अभीमस्ती का आलम साथ चलासब कहते ही रह गए, हम धूल उड़ाते जहाँ अरे तुम कैसे आए, कहाँ चले<br><br>
आए बनकर उल्लास कभीकिस ओर चले? मत ये पूछो, आँसू बनकर बह बस चलना है इसलिए चले अभी<br>सब कहते ही रह गए, अरे तुम कैसे आएजग से उसका कुछ लिए चले, कहाँ जग को अपना कुछ दिए चले<br><br>
किस ओर चले? मत ये पूछोदो बात कहीं, बस चलना है इसलिए चले<br>दो बात सुनी, कुछ हँसे और फिर कुछ रोएजग छक कर सुख दुःख के घूँटों को, हम एक भाव से उसका कुछ लिए चले, जग को अपना कुछ दिए पिए चले<br><br>
दो बात कहींहम भिखमंगों की दुनिया में, दो बात सुनी, कुछ हँसे और फिर कुछ रोए<br>स्वछन्द लुटाकर प्यार चलेछक कर सुख दुःख के घूँटों को, हम एक भाव से पिए निशानी उर पर, ले असफलता का भार चले<br><br>
हम भिखमंगों की दुनिया मेंमान रहित, स्वछन्द लुटाकर प्यार चले<br>अपमान रहित, जी भर कर खुलकर खेल चुकेहम एक निशानी उर परहँसते हँसते आज यहाँ, ले असफलता का भार प्राणों की बाजी हार चले<br><br>
हम मान रहित, अपमान रहित, जी भर कर खुलकर खेल चुके<br>हम हँसते हँसते आज यहाँ, प्राणों की बाजी हार चले<br><br> अब अपना और पराया क्या, आबाद रहें रुकने वाले<br>हम स्वयं बंधे थे, और स्वयं, हम अपने बन्धन तोड़ चले <br><br/poem>