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|रचनाकार=कन्हैयालाल नंदन
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<poem>
तेरी याद का ले के आसरा ,मैं कहाँ-कहाँ से गुज़र गया,
उसे क्या सुनाता मैं दास्ताँ, वो तो आईना देख के डर गया।
मेरे ज़ेहन में कोई ख़्सवाब था
उसे देखना भी गुनाह था
वो बिखर गया मेरे सामने
सारा गुनाह मेरे सर गया।
तेरी याद मेरे ग़म का ले के आसरा ,मैं कहाँ-कहाँ दरिया अथाह हैफ़क़त हौसले से गुज़र गया,<br>निबाह हैजो चला था साथ निबाहनेउसे क्या सुनाता मैं दास्ताँ, वो तो आईना देख के डर रास्ते में उतर गया।<br><br>
मेरे ज़ेहन मुझे स्याहियों में कोई ख़्वाब था<br>न पाओगेउसे देखना भी गुनाह था<br>मैं मिलूंगा लफ़्ेज़ों की धूप मेंवो बिखर गया मेरे सामने<br>मुझे रोशनी की है जुस्तज़ूसारा गुनाह मेरे सर मैं किरन-किरन में बिखर गया।<br><br>
मेरे ग़म का दरिया अथाह है<br>फ़क़त हौसले से निबाह है<br>जो चला था साथ निबाहने<br>वो तो रास्ते में उतर गया।<br><br> मुझे स्याहियों में न पाओगे<br>मैं मिलूंगा लफ़्ज़ों की धूप में<br>मुझे रोशनी की है जुस्तज़ू<br>मैं किरन-किरन में बिखर गया।<br><br> उसे क्या सुनाता मैं दास्ताँ, वो तो आईना देख के डर गया।<br><br>