भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
कभी रोम-रोम से
प्राणों में भर आई
और है कहानी दिगन्त कीकी।
नीले आकाश में
कब से प्रतीक्षा थी
वही बात आ गई
एक लहर फैली अनन्त की ।की।
</poem>