दो बात कहीं, दो बात सुनी, कुछ हँसे और फिर कुछ रोए
छक कर सुख -दुःख के घूँटों को, हम एक भाव से पिए चले
हम भिखमंगों की दुनिया में, स्वछन्द लुटाकर प्यार चले
अब अपना और पराया क्या, आबाद रहें रुकने वाले
हम स्वयं बंधे थे, और स्वयं, हम अपने बन्धन तोड़ चले
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