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आईन-ए-वफा इतना भी सादा नहीं होता / शबनम शकील
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16:22, 10 जुलाई 2013
इक आँच की पहले भी कसर रहती रही है
क्यूँ सातवाँ दर मुझ पे
कुषादा
कुशादा
नहीं होता
सच बात मिरे मुँह से निकल जाती है अक्सर
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