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|भाषा=खड़ी बोली
}}
<poem>
नन्हीं-नन्हीं बुँदियाँ रे
सावण का मेरा झूलणा
एक सुख देखा मैंने अम्मा के राज में
हाथों में गुड़िया रे, सखियों का मेरा खेलणा
नन्हीं-नन्हीं बुँदियाँ रे…
एक सुख देखा मैंने, भाभी के राज में गोद में भतीजा रे गळियों का मेरा घूमणानन्हीं-नन्हीं बुँदियाँ रे<br>रे…
सावण एक सुख देखा मैंने बहना के राज में हाथों में कसीदा रे फूलों का मेरा झूलणा<br>काढ़णा नन्हीं-नन्हीं बुँदियाँ रे…
एक सुख दु:ख देखा मैंने अम्मा सासू के राज में <br>धड़ी- धड़ी गेहूँ रे चक्की का मेरा पीसणानन्हीं-नन्हीं बुँदियाँ रे…
हाथों में गुड़िया रे, सखियों का मेरा खेलणा<br> नन्हीं-नन्हीं बुँदियाँ रे…<br> एक सुख देखा मैंने, भाभी के राज में <br> गोद में भतीजा रे गळियों का मेरा घूमणा<br> नन्हीं-नन्हीं बुँदियाँ रे…<br> एक सुख देखा मैंने बहना के राज में <br> हाथों में कसीदा रे फूलों का मेरा काढ़णा <br> नन्हीं-नन्हीं बुँदियाँ रे…<br> एक दु:ख देखा मैंने सासू के राज में <br> धड़ी- धड़ी गेहूँ रे चक्की का मेरा पीसणा<br> नन्हीं-नन्हीं बुँदियाँ रे…<br> एक दुख देखा मैंने जिठाणी के राज में <br> धड़ी- धड़ी आट्टा रे चूल्हे का मेरा फूँकणा<br> नन्हीं-नन्हीं बुँदियाँ रे<br> सावण का मेरा झूलणा<br>
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