भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
इस आइने को कभी शर्मसार मत करना
फ़क़ीर बन के मिले इस अहद के रावनरावण
मेरे ख़याल की रेखा को पार मत करना
ज़माने वालों का तुम ऐतबार मत करना
ख़रीद देना खैलौने खिलौने तमाम बच्चों कोतुम उनपे उन पे मेरा आश्कार मत करना
मैं एक रोज़ बहरहाल लौट आऊँगा
तुम उँगुलियों पे मगर दिन शुमार मत करना
</poem>