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| रचनाकार= इरशाद खान सिकंदर
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मिरी ग़ज़लों में जिसने चांदनी की
उसी ने जिंदगी तारीक भी की

वहाँ भी जिंदगी ने धर दबोचा
वो कोशिश कर चुका है ख़ुदकुशी की

कोई उसकी हिमायत में नहीं है
हिफ़ाज़त कर रहा था जो सभी की

अगर ये ख्वाब सच्चा हो तो क्या हो
मिले भी और उससे बात भी की

छुपाया मैंने सबसे राज़ अपना
मिरे अश्कों ने लेकिन मुखबिरी की

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