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'{{KKGlobal}} {{KKRachna | रचनाकार= इरशाद खान सिकंदर }} {{KKCatGhazal}} <poem> चीख़...' के साथ नया पन्ना बनाया
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| रचनाकार= इरशाद खान सिकंदर
}}
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चीख़ रहे हैं सन्नाटे
कोई कैसे शब काटे
नफ़रत ऐसा पेशा है
जिसमें घाटे ही घाटे
खुश होंगे वो उससे ही
जो उनके तलवे चाटे
ऐसी मिट्टी दे मौला
जो दिल की खाई पाटे
अपना घर है तो फिर क्यों
रात कोई बाहर काटे
</poem>
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| रचनाकार= इरशाद खान सिकंदर
}}
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चीख़ रहे हैं सन्नाटे
कोई कैसे शब काटे
नफ़रत ऐसा पेशा है
जिसमें घाटे ही घाटे
खुश होंगे वो उससे ही
जो उनके तलवे चाटे
ऐसी मिट्टी दे मौला
जो दिल की खाई पाटे
अपना घर है तो फिर क्यों
रात कोई बाहर काटे
</poem>