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भारत महिमा / जयशंकर प्रसाद

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त्रुटियों का निवारण
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हिमालय के आँगन में उसे, प्रथम किरणों का दे उपहार
उषा ने हँस अभिनंदन किया, और पहनाया हीरक-हार
जगे हम, लगे जगाने विश्व, लोक में फैला फिर आलोक
व्योम-तुम तम पुँज हुआ तब नाशनष्ट, अखिल संसृति हो उठी अशोक
विमल वाणी ने वीणा ली, कमल कोमल कर में सप्रीत
सप्तस्वर सप्तसिंधु में उठे, छिड़ा तब मधुर साम-संगीत
बचाकर बीच बीज रूप से सृष्टि, नाव पर झेल प्रलय का शीत अरुण-केतन लेकर निज हाथ, वरुण-पथ में पर हम बढ़े अभीत
सुना है वह दधीचि का त्याग, हमारी जातीयता का विकास
पुरंदर ने पवि से है लिखा, अस्थि-युग का मेरा इतिहास
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