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Kavita Kosh से
|रचनाकार=गुलज़ार
}}
{{KKCatNazm}}<poem>हिंदुस्तान में दो दो हिंदुस्तान दिखाई देते हैं<br><br> एक है जिसका सर नवें बादल में है<br>दूसरा जिसका सर अभी दलदल में है<br><br> एक है जो सतरंगी थाम के उठता है<br>दूसरा पैर उठाता है तो रुकता है<br><br> फिरका-परस्ती तौहम परस्ती और गरीबी रेखा<br>एक है दौड़ लगाने को तय्यार खडा है<br><br> ‘अग्नि’ पर रख पर पांव उड़ जाने को तय्यार खडा है<br>हिंदुस्तान उम्मीद से है!<br><br> आधी सदी तक उठ उठ कर हमने आकाश को पोंछा है<br>सूरज से गिरती गर्द को छान के धूप चुनी है<br><br> साठ साल आजादी के…हिंदुस्तान अपने इतिहास के मोड़ पर है<br>अगला मोड़ और ‘मार्स’ पर पांव रखा होगा!!<br><br>
हिन्दोस्तान उम्मीद से है..
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