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और इशरत की तमन्ना क्या करें
सामने तू हो तुझे देखा करें

महव हो जाएँ तसव्वुर में तेरे
हम भी अपने क़तरे को दरिया करें

हम को है हर रोज़ हर वक़्त इंतिज़ार
बंदा-परवर गाह गाह आया करें

चारा-गर कर चाहिए करना इलाज
उस को भी अपना सा दीवाना करें

उन के आने का भरोसा हो न हो
राह हम उन की मगर देखा करें

हम नहीं ना-वाक़िफ़ रस्म-ए-अदब
दिल की बे-ताबी को ‘वहशत’ क्या करें
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