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प्रेम / नन्दकिशोर नवल

4 bytes added, 07:02, 20 अगस्त 2013
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मेरे प्राणों के शिखरज्योतिर्मय शिखर ज्योतिर्मय हो रहे हैं,
मेरे मन के आम्रवन में मलयपवन का संचार हो रहा है,
मेरे अन्तर के शालिक्षेत्र पर चन्दा का अमृत बरस रहा है,
मेरी चेतना का क्षितिज परिधान बदल रहा है,
मेरे मानसलोक में एक अपर लोक से किरणें आ रही हैं
कुआ क्या भीतर की पपड़ियाँ तोड़कर
तुम निकल रहे हो,
प्रेम ?
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