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|रचनाकार=देवी नांगरानी
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कुछ अंधेरो में दीपक जलाओ
आशियानों को अपने सजाओ।
कुछ अंधेरो में दीपक जलाओ<br>घर जलाकर न यूँ मुफलिसों केआशियानों को अपने सजाओ।<br><br>उनकी दुश्वारियाँ तुम बढ़ाओ।
घर जलाकर न यूँ मुफलिसों के<br>कुछ ख़राबी नहीं है जहाँ मेंउनकी दुश्वारियाँ नेकियों में अगर तुम बढ़ाओ।<br><br>नहाओ।
कुछ ख़राबी नहीं है जहाँ प्यार के बीज बो कर दिलों में<br>नेकियों में अगर ख़ुद को तुम नहाओ।<br><br>नफ़रतों से बचाओ।
प्यार के बीज बो कर दिलों में<br>ख़ुद को तुम नफ़रतों शर्म से बचाओ।<br><br>है शिकास्तों ने पूछाजीत का अब तो घूँघट उठाओ।
शर्म से है शिकास्तों ने पूछा<br>जीत का अब तो घूँघट उठाओ।<br><br> इलत्ज़ा अशक़ करते हैं देवी<br>
ज़ुल्म की यूँ न हिम्मत बढ़ाओ।
</poem>
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