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|रचनाकार=कबीरदास
}}
{{KKCatPad}}{{KKCatBhojpuribhasha}}<poem>कौ ठगवा नगरिया लूटल हो।। टेक।।
चंदन काठ कै वनल खटोलना, तापर दुलहिन सूतल हो।। 1।।
उठो री सखी मोरी माँग सँवारो, दुलहा मोसे रूसल हो।। 2।।